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४८. गाथा न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ
न मित्तवग्गा न सुया न बन्धवा । एक्को सयं पच्चणुहोइ दुक्खं
कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ।
उत्त० अ० १३ गा० २३
अर्थ
जीव के दुख में उसके सम्बन्धी हिस्सा नहीं बटाते । मित्र वर्ग, पुत्र तथा अन्य भाई वान्धव कुछ भी सहायता नहीं कर सकते । यह जीव अकेला ही अपने कर्मों का भोग करता है क्यों कि नियम है कि कर्ता के पीछे ही कर्म जाता है।