________________
१. धन से कभी भी पाप-फल से,
वाण हो सकता नहीं । इस लोक में परलोक में, .
फल्याण हो सकता नहीं ।।
२. ज्ञान का दीपक बुझे नित,
मोह के संज्ञावात में । न्याय - पथ से दिखे,
फिर मोह को फालो रात में ।।
.
.
३. धन का भरोमा न करो,
ठो है जग की सम्पदा । * महावीर ने प. सदनन.
प्रिय सिप्प नीता से पहा ।।