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४७. गाया
वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते
इमम्मि लोए अदुवा परत्था ।
दीवप्पणट्ठे व अनंत सोहे नेयाज्यं दट्ठमट्ठ सेव ॥
अर्थ
उत्त० अ० ४ गा० ५
पापी पुरुष इस लोक में तथा परलोक में कहीं भी धन के बल पर अपने कर्मों के फल मे नहीं बच सकता । अनन्त मोह के कारण प्राणी का ज्ञान दीप बुझ जाता है । वह न्याय मार्ग को देखता हुआ भी न देखते हुए को तरह काम करता है ।