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१. सिर मुंडवाने से कोई,
श्रमण बन सकता नहीं । क्या ओम् पद के रटन से,
ब्राह्मण कहा जाता कहीं ? ||
२. चन-पास फरने से कभी भी,
मुनि पद मिलता नहीं । पया कुशा चीवर धार फर,
तापस बना जाता फहीं ? ॥
३ महत्व तो कुछ भी नहीं,
मात्म धर्म में वेप का । * महापोर ने यह सुववन,
प्रिय तिष्प गौतम से रहा।