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३५. गाथा
समयाए समणो होइ
बंभचेरेण बंभणो । नाणेण य मुणी होइ
तवेण होइ तावसो ॥
उत्त० अ० २५ गा० ३२
अर्थ
समता से ही व्यक्ति श्रमण होता है। ब्रह्मचर्य का पालन करने से ही व्यक्ति ब्राह्मण होता है । ज्ञान से ही साधक मुनि वनता है और इच्छा का निरोध करने से अर्थात् तप से ही व्यक्ति तापस होता है।