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१. धागे वाली सूचिका ज्यों ?
गुम न होने पाती है । गिर जाने पर भी वह शीघ्र,
आंखों में आ जाती है ।।
२. ऐसे ही ज्ञानी पथ से,
न विचलित होने पाता है । फर्म दोष से डिगा हुआ भी,
सत्वर • पथ पर आता है ।।
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लोप में परलोक में,
लो आपय नित ज्ञान का । महावीर ने यह सुपचन,
प्रिय तिर गौतम से रहा ।।
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