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३३. गाथा
जहा सूई ससुत्ता
पडियाविन विणस्सइ। तहा जीवे ससुत्ते
संसारे न विणस्सइ॥
उत्त० अ० २९ गा० ५९
अर्थ
जैसे धागा-पिरोई हुई सूई के गिर जाने पर भी सरलता से मिल जाती है। ठीक इसी तरह सूत्रज्ञान से युक्त आत्मा संसार में पथ भ्रष्ट नहीं होता। यदि पूर्व कर्मानुसार कहीं मार्ग से गिर भी जाये तो शीन ही सम्भल जाता है ।