________________
३२. गाथा
जावन्तऽविज्जा पुरिसा
सव्वे ते दुक्खसंभवा । लुप्पन्ति बहुसो मूढा
संसारम्मि अणन्तए ॥
उत्त० अ० ६ गा० १
अर्थ
संसार में जितने भी अज्ञानी मनुष्य हैं सब दुख उन्हें ही होते हैं। अज्ञानी इस अनन्त संसार म बहुत प्रकार से कष्ट उठाते हुए परिभ्रमण करते रहते हैं।