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१. है पञ्चदोष का वास जहाँ,
न वहाँ सभी शिक्षा जातो। न वह देखे ऊँचे कुल को,
न वह देखे ऊंची जाति ।।
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जो अहंकार में चूर रहे,
न विजय क्रोध पर पाता है । प्रमाद, रोग व आलस को,
न मन से दूर हटाता है ।
३ उस साधक को शिक्षा दासो,
जो पञ्चदोष से दूर रहा। * महादोर ने कहा सुपचन,
प्रिय तिर गौतम से पहा ।।