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१. जो मुंह आया वक देता है,
जो हर हृदय से द्रोह फरे । जो अभिमान रसासक्ति,
न असंयम से रहे परे ।
२. जो कांटे सा सबको खटके,
जो दे न फर के वटवारा। ऐसा साधक अविनीत कहा,
न लगे किसी को भी प्यारा ॥
३. अधिनीत को साधफ ! समान,
निएफल है सारी साधना । ★ महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिप्प गौतम से पाहा ।।