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२९. गाथा
पइण्णवाई दुहिले
थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। असंविभागी अवियत्ते
अविणीए त्ति वुच्चइ॥
उत्त० अ० ११ गा० ९
अर्थ
(८) जो असम्बद्ध प्रलापी हो। (९) द्रोही हो। (१०) जो अभिमानो हो। (११) जो रसों में मासक्त हो । (१२) जो इन्द्रियों के वश में हो । जो अंसविभागी हो। जो सब को अप्रीतिकर हो । उसे अविनीत कहते है।