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धर्म और दर्शन (ज्ञान)
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१६५ धर्मश्रवण से तत्त्व-ज्ञान, तत्त्व-ज्ञान से विज्ञान, विज्ञान से प्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान से सयम, सयम से अनाश्रव, अनाश्रव से तप, तप से निर्जरा, निर्जरा से निष्कर्मता और निष्कर्मता से सिद्धि प्राप्त होती है।
१६६ जितने अविद्यावान् पुरुप हैं वे सव अनेकानेक दु ख उत्पन करनेवाले है ।
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सर्वद्रव्य, सर्वगुण और सर्वपर्यायो का स्वरूप जानने के लिए ज्ञानियो ने पाँच प्रकार का ज्ञान बतलाया है ।
ज्ञान पाँच प्रकार का है-श्रुतज्ञान, आमिनिवोधिक ज्ञान [मतिज्ञान] अवधिज्ञान, मन पर्यव ज्ञान और केवलज्ञान ।
११६ ज्ञान दो प्रकार का कहा है-लौकिक- रामायण आदि और लोकोत्तरआचाराङ्ग (आगम) आदि ।
२०० ज्ञानी आत्मा को किसी भी परिस्थिति मे प्रमाद नहीं करना चाहिए।
२०१ ज्ञानी लोभ और भय से सदा मुक्त होते है।
२०२ विवेक [ज्ञान] शीघ्र प्राप्त नही होता।
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दो स्थानो से जीव ससाररूप वन को पार करता है-विद्या [ज्ञान] से और चारित्र से।