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ब्रह्मचर्य
११४ जो व्यक्ति दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करता है, उस ब्रह्मचारी के चरणो मे देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर ये सभी नमस्कार करते हैं।
जिस प्रकार कछुआ अपने अगो को अन्दर मे सिकोड कर खतरे से मुक्त हो जाता है, उसी प्रकार साधक अध्यात्मयोग के द्वारा अन्तराभिमुख होकर अपने आप को विषयो से बचाये रखे ।
जो काम-गुण है, इन्द्रियो के शब्दादि विषय है वह आवर्त-ससार चक्र है और जो आवर्त है वही काम-गुण है ।
११७ तपो मे उत्कृष्ट तप-ब्रह्मचर्य है ।
११८ ब्रह्मचर्य-उत्तम तप, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, सम्यक्त्व और विनय का मूल है।
११६ एक ब्रह्मचर्य के नष्ट होने पर अन्य सव गुण सहसा नष्ट हो जाते हैं, और एक ब्रह्मचर्य की आराधना कर लेने पर अन्य सव व्रतशील, तप, विनय आदि भाराधित हो जाते हैं ।
१२० एक ब्रह्मचर्य की साधना करने से अनेक गुण स्वत प्राप्त हो जाते हैं ।