________________
धर्म और दर्शन (अस्तेय)
२६
१०८ जो असविभागी है, असग्रहरुचि है, अप्रमाणभोगी है, वह अस्तेय व्रत की सम्यक् आराधना नही कर सकता।
१०६ जो सविभागशील है, सग्रह और उपग्रह मे कुशल है, वही अस्तेयव्रत की सम्यग् आराधना कर सकता है ।
११० जव व्यक्ति लोभ से अभिभूत होता है तव चौर्य-कर्म के लिए प्रवृत्त होता है।
१११ जो सविभागी-प्राप्त सामग्री को साथियो मे वॉटता नही है, उसकी मुक्ति नहीं होती।
११२ दूसरो का धन हरण करनेवाले मनुष्य निर्दय एव परभव की उपेक्षा करनेवाले होते हैं।
११३ पर धन मे गृद्धि का मूल हेतु लोभ है और यही चौयं-कर्म है। .