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________________ २७० ] [ भगवान महावीर जैनियोके हैं । तथापि गाथामें आत्माके असली स्वभावमें दृढ़ श्रद्धान भी झलक रहा है । जैनियोकी निश्चयनयसे 'आत्माको कोई भी किसी तरहसे हानि नहीं पहुंचा सक्ता' यह प्रकट है और अङ्गुलिमाल यह श्रद्धान उक्त गाथामें स्पष्ट प्रकट कर रहा है, जो बौद्धमान्यता के प्राय विरुद्ध ही है क्योकि बौद्धधर्म अनात्मवादका • प्रतिपादन करता है । इस अपेक्षा भी अङ्गुलिमालका जैन होनेका विश्वास होना और इस कथाका संबंध जैन साहित्यसे होना प्रमाणित होता है । किन्तु यह भी देखना चाहिये कि जैन साहित्ययें भी कोई ऐसी या इससे मिलती जुलती कथा मिलती है क्या ? हत्भाग्यसे अभीतक हमारे देखने में ऐसी कोई कथा जैनसाहित्यमें नही आई है और इस कारण इसके विषय में कुछ अधिक नही कहा जाता है। बौद्धसाहित्यके उपरोल्लिखित स्थानोपर जैन सम्बन्धोका विवरण हम देख लेते है और वास्तवमे उन्हें विशेष महत्वका पाते है । भगवान् महावीरके बिल्कुल निकटवर्ती कालकी वह रचना है इस अवस्थामे इससे ऐसा महत्वपूर्ण विवरण पाना उचित भी था । सचमुच चौडशास्त्रोमे जो उक्त प्रकारके जैन सम्बन्धमें स्पष्ट उल्लेख मिलते हैं उनके लिये हमें उनकी उपयोगिता स्वीकार करनी पडती है । यद्यपि उनमें प्राय. जैनधर्मके सम्बन्धमें अयथार्थ और द्वेपपूर्ण विवेचनका अभाव नहीं किन्तु उनमे ऐसा होना प्रकृत हैं, क्योंकि आखिर वे जैनियोंके विपक्षी एक विधर्मी दलकी रचनायें हैं। उतनेपर भी उनकी उपेक्षा करके यदि हम राजहस नीतिका अवलम्बन लें तो हमें उनमें बहुत कुछ महत्वशाली तथ्यपूर्ण विवरण मिलता हैं, जैसे कि हम पूर्व पृष्ठों में देख चुके है । हम अपने
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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