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- और म० बुद्ध ]
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किन्तु इसमें जो ऋषिदासीके पुर्नविवाहका उल्लेख है वह कुछ अटपटा ही है । जैन कथाओंमें हमें कोई ऐसा उल्लेख देखनेको नही मिलता है । संभव है बौद्ध लेखकने इसको विकृत रूप देनेके लिये अपने आप यह कथन गढ़ लिया हो और इस कथाको अपना लिया हो। इसके लिये हमें देखना चाहिये कि जैनशास्त्रों में भी कोई ऐसी कथा अथवा इससे सादृश्य रखनेवाली कथा है ? हमारे देखनेमें ' उत्तरपुराण' में एक कथा आई है, जिससे उक्त कथाका सम्बन्ध हो तो कोई आश्चर्य नहीं !' वहां लिखा है कि सम्राट् श्रेणिकके प्रश्नके उत्तरमें प्रधान गणधर इन्द्रभूति गौतम कहते हैं कि वीरभगवानके तीर्थमे अंतिम केवलज्ञानी जम्बूकुमार होंगे। उस दिनसे, जिस दिन यह प्रश्न पूछा गया था, सातवें दिन इन जंबूकुमारका जन्म राजगृहनगरमें होना बतलाया गया है । इनके पिताका नाम 'अर्हदास' और माताका नाम 'जिन्दासी' लिखा गया है । उपरान्त कहा है कि जब भगवान महावीर के निर्वाणोपरांत पुनः गौतम गणधर सुधर्माचार्य सहित यहां आयेंगे तत्र राजा कुणिक अजातशत्रु पूजा वंदना करने आवेगा और जंबूकुमार भी वैराग्यको धारण करेगे किन्तु माता-पिता दीक्षा धारण नहीं करने देंगे । इस घटना के बाद जम्बूकुमारका विवाह पद्मश्री, कनकमाला और कनकीके साथ हो जावेगा, परन्तु वह संसारभोगसे विरक्त रहेगा। ये सब तें घटित हुई और इसी समय एक विद्युच्चोर जम्बूकुमारके घर आ निकला था । इन दोनोमे परस्पर संसारकी असारता पर वाद हुआ था, जिसके अन्तमें जम्बूकुमार और उनके माता
१. उत्तरपुराण पृष्ठ ७०२.