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________________ २५४] [भगवान महावीरयहां निमंत्रित किया । जव नग्न निर्गन्थोंने यह जाना कि बुद्ध मिगारसेट्ठीके घरमें मौजूद हैं तो उन्होंने उनके घरको घेर लिया। विशाखाने अपने श्वसुरसे भी बुद्धका सत्कार करनेके लिए कहा। 'नग्न निग्रन्थोनें श्रेष्ठिको वहां जानेसे रोका । इसपर विशाखाने स्वयं ही बुद्धको आहार दिया। बुद्ध और उनके शिष्य जब आहार कर चुके तब विशाखाने फिर अपने श्वसुरसे आकर उपदेश सुननेका आग्रह किया । नग्न निग्रन्थोंने इस समय भी सेठीको वहां जानेसे रोका; किन्तु जब वह नहीं माना तो उन्होने वहां पर्दा डालकर उसके पिछाड़ी सेठीको बिठा दिया। सेठीने वहींसे बुद्धका उपदेश सुना और उसमें उनको विश्वास हो गया । वह अपनी वहूके पास पहुंचे और बोले, "आजसे तू मेरी माता है ।" उसी "समयसे विशाखा मिगारमाताके नामसे प्रख्यात् हुई। उसने करोड़ों रुपये खर्च करके बुद्ध के लिए श्रावस्ती में एक आराम बनवा दिया।"" इस कथामें भी जैनधर्मके प्रति कटुभाव झलक रहे है। यहां भी बौद्धाचार्यका उद्देश्य जैनसाधुओंको हेय प्रकट करनेका है। इस ‘दशामें इसमें कितना तथ्य है, यह सहन अनुभवगम्य है। किन्तु इससे __ यह स्पष्ट है कि जैनमुनियोंका भेष नग्न था,जैसे कि अन्य उद्धरणोंसे __ 'प्रमाणित है। साथ ही यह भी दृष्टव्य है कि उस समय श्रावस्तीमें जैनियोंकी संख्या अधिक थी। इसमें भी श्रेष्ठीका मधुमिश्रित दूध 'पीना, मुनियोंद्वारा रोका जाना आदि बातें जैन नियमोंके विरुद्ध हैं। ___ 'धम्मपद' में नग्नता भी साधुपनेका एक चिह्न वतलायी गयी है। इसपर टीका करते हये टीकाकार एक और कथा लिखते हैं, १ हिस० ग्ली. पृ० १३-१५ . धमापद (S. B. B. Vol.x) पृष्ठ ३८ 1
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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