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________________ - - २५२] [ भगवान महावीरहै कि जैनमुनियोंको पहले ही निमंत्रित किया गया था और उन्हें एक स्थानपर बैठनेके लिये आसन दिया गया था । अतएव इसमें संशयको स्थान नहीं रहता कि बौद्धाचार्यने उक्त जैनकथाके उत्तरमें यह मनगढन्त कथा रच डाली थी और इस रूपमें इसका महत्व कुछ भी नहीं है । ईसाकी ६ वी ७वीं शताव्दियोमें पारस्परिक विद्वेष खूब जोर पकड़े हुए था । उसी समयकी यह रचना है। इस कारण इस तरह भी वह विश्वसनीय नही है। इसी चौद्धग्रन्थमें एक अन्य कथा भी इसी दंगकी दी हुई है' उसमें कहा गया है कि अंग राज्यके भद्दियनगरमें रहनेवाले मेन्डकसेठीके पुत्र धनंजय सेठीकी पुत्री विशाखा थी। मेन्डकसेठीका परिवार म० बुद्धका अनन्य भक्त था । धनंजयसेठी कौशलके राजा यसेनदीके कहनेसे उनकी राजधानी साकेतमें जारहे ! विशाखाका विवाह मिगारसेठीके पुत्र पुनवडनसे होगया था। मिगार सेठी निगन्थोंका भक्त था । विवाहोपरांत विशाखाकी विदा श्वसुरगृहको श्रावस्ती होगई। एक दिवस मिगार सेठीने ६०० दिगम्बर जैन मुनियों (निर्ग्रन्थों)को आमंत्रित किया और जब वे आगए तो उनने अपनी वहूसे उन अर्हतों (साधुओं)को प्रणाम करनेके लिये कहा। .अहतो (साधुओ)की बावत सुनकर वह भगी आई और उन्हें देखकर वोली, "ऐसे बेशरम व्यक्ति अरहत (साधु) नहीं होसक्ते ? मेरे श्वसुरने वृथा ही मुझे क्यों बुलाया ?" इस तरह अपने श्वसुरपर लांछन लगाकर वह चली गई। नग्न निगन्थोंने इसपर रोष किया और सेठीसे उसे घरसे वाहिर निकाल देनेके लिये कहा क्योंकि 1. विसाखावत्यू (P. T. S.Vol, I) भाग २ पृष्ट ३८४ ! .
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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