SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -और-म० बुद्ध [२५१ कितना तथ्य है यह इसीसे प्रमाणित है। मालूम होता है कि जैन-- शास्त्रोमें चौद्धभिक्षुओंके सम्बन्धमे जो एक ऐसी ही कथा हमें मिलती है, उस हीके उत्तरमें यह कथा बुद्धघोषको गढ़नेकी आवश्यक्ता पड़ी है। जैन कथामें सम्राट श्रेणिक और उनकी पट्टरांनी चेनीका सम्बन्ध है । राना चेटककी पुत्री जैन थी और श्रेणिक बौद्ध थे किन्तु अपने पतिको भी जिनेन्द्रभक्त बनानेके लिए राजा चेटककी पुत्री चेलनीने बौद्ध भिक्षुओको निमंत्रित किया था, मलिन पदार्थ जहां गढ़े हुये थे वहां उन्हें बैठाया, परन्तु उन्हें इसघातकाभान नहीं हुआ और फिर उन्हींके जूतोंके टुकड़े करके भोजनमें उन्हें खिला दिये, परन्तु तब भी उन्हें कुछ ज्ञान नहीं हुआ। इस तरह सम्राट् श्रेणिकको अपने गुरुओंकी सर्वज्ञताको प्रमाणित करनेमें असफलता देखनी पड़ी। फिर श्रेणिकने किस तरह इसका बदला जैनमुनिको त्रास देकर लिया तथा उनकी सहनशीलता देखकर उसे जैनधर्ममें प्रीति हुई फिर भी वह बौद्धोके कहनेसे बौद्ध रहा और अन्ततः भगवान महावीरके समवशरणमें उसे जैनधर्मका क्षायिकसम्यक्त्व प्राप्त हुआ ये सब बातें जैनशास्त्रोमें वर्णित हैं । इसी जैन वर्णनके उत्तरमें बौद्ध ग्रन्थमें उक्त प्रकार कथा दी गई हो तो कोई आश्चर्य नहीं ! सचमुच यह कथा जैनियोंकी उक्त कथाके उत्तरमें लिखी गई थी। इसका यही प्रमाण है कि द्वेषसे प्रेरित बौद्ध आचार्य जैनमुनियोंकी चर्याक विरुद्ध भी कथन कर गये है । जैनमुनि कभी भी निमंत्रण स्वीकार नही करते, वे खडेर ही भोजन ग्रहण करते है, ये बातें स्वयं बौद्धग्रंथोंसे प्रमाणित हैं परन्तु फिर भी यहांपर- कहा गया, १. अणिक चरित्र । - -
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy