________________
-और म० वुद्ध ]
[२४९
गया था' तो यह बिल्कुल संभव है कि जैनधर्मका प्रचार यूनानवासियोंमें विशेष होगया हो। इस व्याख्याकी प्रामाणिकताका विश्वास इस कारण और होता है कि यूनानी विद्वानोंकी शिक्षा नैना धर्मसे बहुत सादृश्य रखती है । उनके तत्ववेत्ता पर्रहो (Pyrrho) ने स्वयं जैनमुनियोंके निकटसे तात्विक शिक्षा ग्रहण की थी इस परिस्थितिमें विशेष अनुसन्धान यदि किया जाय तो यूनानमें जैनधर्मकी व्यापकताका विशेष पता लगना संभवित है।
. उपरोक्तके उपरान्त 'मिलिन्दपन्ह' में जैनियोंकी जल सम्बन्धी मान्यताका उल्लेख है कि जलमें भी जीव होता है । राजा मिलिन्द कहते है कि जलमें भी जीव होता है और उसे वे विविध रीतिसे प्रमाणित करते है; किन्तु उत्तरमें नागसेन कहते हैं कि 'नहीं, राजन, जलमे कोई जीव नहीं है। यह जैनियोकी मान्यताका स्पष्ट उल्लेख है । इसके अतिरिक्त इस ग्रन्थमें कोई उल्लेख हमारे देखने में नहीं आया है।
बौद्धसाहित्य अगाड़ी 'धम्मपदत्यकथा' में भी जैन उल्लेख मिलते है । एक स्थलपर (भाग २ १० ४३४-४४७) उसमें श्रावस्तीके श्रीगुप्त और गरहदिन्नकी कथा लिखी है । श्रीगुप्त बौद्धमती था और गरहदिन्न एक जैन था । गरहदिन्नके निर्ग्रन्थ गुरुओंको बौद्ध बतलाते है कि वे सब कुछ जानते थे। उनके ज्ञानसे अगोचर कोई पदार्थ शेप नहीं है । भूत, भविष्य, वर्तमानको सब बातें और मन, वचन, कायिक सब कर्म तथा जो कुछ होनी और
१. “जैन. सिद्धारत भास्कर" किरण २-३ पृष्ठ ९. २. मूल पुस्तक. पृ० २६-२७. 3. Milinda, S. B.E. XXXV. P. 85.
-
-