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[ भगवान महावीरमहावीर ) के पास चलने और उनके निकट अपनी शंकाओंको हल करनेके लिये कहा, उससे प्रकट है कि ईसासे पूर्व दूसरी शताब्दिमें जब यूनानी लोग भारतके सीमाप्रान्त पर बस गये थे तव उनमें भी जैनधर्मका प्रवेश होगया था | मिलिन्द-पन्हमें यहां जो स्वयं भगवान महावीरका उल्लेख किया गया है वह ठीक नहीं है क्योकि 'मिलिन्दपन्ह' से प्राचीन वौद्धग्रन्थोमें भगवानको अजातशत्रुका समकालीन लिखा है । अस्तु; यहां विशेष दृष्टव्य यह है कि केवल यूनानियोके साधारण मनुष्योमें ही-जैनधर्मकी मान्यता घर नहीं कर गई थी बल्कि विविध कारणोंवश हमें यह विश्वास हुमा है कि स्वय यूनानी सम्राट् मिलिन्द भी किसी समय अवश्य ही जैनधर्मानुयायी रहे थे । इस वौडग्रथमें उनकी राजधानीमें अन्य समणोंका प्रभाव वर्णित किया है और राजा मिलिन्दको एक मिथ्यात्वीकी भांति चौद्धधर्मपर आक्रमण करते लिखा है तथा चौड शिष्य नागसेनको उसे परास्त करनेके लिये भेजा गया अकित किया है । इन नागसेन और राना मिलिन्दमें जो वाद हुआ था, उसमें जैन मान्यताकी झलक ननर पड़ रही है। आत्माका अस्तित्व, छह इंद्रियां, जलमें जीव, निर्वाण आदिका प्रतिपादन जो उन्होंने किया है वह ठीक जैन धर्मके अनुसार है । अतएव इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि राना मिलिन्द जैन धर्मानुयायी हो । अन्यत्र इस सम्बन्धमें विस्तृत विवेचन देखना चाहिये । सचमुच जब जन सम्राट् चंद्रगुप्तका विवाह सम्बंध तक यूनानी राजा सेल्यूकसकी पुत्रीसे हुआ था और सिकन्दरआजम अपने साथ जैन मुनियोंको ले
१ 'वीर' २ पृष्ठ ४१३. २. भारतके सचीन राजवंश. ,
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