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________________ -और म० बुद्ध] [१९१ इसमें म० बुद्धने भघवान महावीर (निर्ग्रन्थ ज्ञातपुत्र )के अस्तित्व और उनकी सर्वज्ञता तथा उनके द्वारा उपदिष्ट कर्म सिद्धान्तको प्रकट किया है। यह ठीक उसी तरह है, जिस तरह जैन ग्रन्थोंमें बताया गया है। ऐसाही प्रसंग 'मज्झिमनिकाय में एक स्थान पर और आया है। इसका अनुवाद हम मूल पुस्तकमें पहिले यथास्थान लिख चुके है। उसमें भी इसी प्रकार भगवान महावीर और उनकी सर्वज्ञता एवं उनके द्वारा प्रतिपादित कर्मसिद्धान्तको स्वीकार किया गया है। जैन धर्मकी मानताओके यह स्पष्ट और महत्वशाली प्रमाण हैं। इनके अतिरिक्त 'मज्झिमनिकाय ' में एक 'अभयराजकुमार । सुत्त है और इसमें श्रेणिक विम्बसारके पुत्र अभयकुमारका वर्णन है । यह अभयकुमार वही हैं निन्होंने भगवान महावीरके समव__ शरणमें दीक्षा ली थी और जो पहिले बौद्धधर्मावलम्बी थे। जैन शास्त्रोंमें इनका विशद वर्णन मौजूद है, किन्तु बौद्धोंके उक्त सुत्तमें कहा गया है कि जिस समय बुद्ध राजगृहके वेलुवनमें मौजूद थे, उस समय निगन्थ नातपुत्त (भगवान महावीर ) ने इनको सिखलाकर म० बुद्धके पास भेना कि जाकर बुद्धसे पूछो कि तुम किसीसे कठोर या अनुचित शब्द कहते हो या नहीं। यदि वह उत्तरमें हां कहें तो उनसे पूछना कि तुममें और साधारण मनुष्योंमें फिर क्या अन्तर है ? यदि वह इन्कार करें तो कहना कि इन शब्दोंका व्यवहार तुमने कैसे कियाः १ मज्झिमनिकाय (P. T.S) भाग २ पृष्ठ २१४-२१८. २ मूल पुस्तक पृष्ठ ८८. ३. P. T. S. भाग १ पृष्ट ३८२ इत्यादि.
SR No.010165
Book TitleBhagavana Mahavira aur Mahatma Buddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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