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-और म० बुद्ध ]
[११३ यह नन्दिसंघकी दूसरी पट्टावलीकी एक गाथा है, और 'विक्रमप्रबन्ध में भी पायी जाती है। (जैनसिद्धान्तभास्कर किरण ४ पृ.७५) (२) णिवाणे वीरजिणे छव्वाससदेस पंचवरिसेसु।।
पणमासेमु गदेसु संजादो सगणिओ अहवा ।। ८१॥
यह गाथा आजसे करीब १५०० वर्ष पहिलेकी रची हुई 'तिलोयपण्णत्ति'की गाथा है और इसमें वीर निर्वाण प्राप्तिसे ६०६, वर्ष ५ महीने बाद शक राना हुआ ऐसा उल्लेख है। (३) पण छस्सयवस्सं पणमास जुदं गमिय वीरणिचुइदो।
सगराजो तो कक्की चदुनवतियमहिय सगमासं॥८५०॥ __यह त्रिलोकसारकी गाथा है और इसमें 'तिलोयपण्णत्ति की: उपरोक्त गाथाकी भांति वीर निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद शक राजाका और ३९४ वर्ष ७ महीनेबाद कल्किका होना बतलाया है।
(४) 'आर्यविद्यासुधाकर' में भी लिखा है:'ततः कलिनात्र खंडे भारते विक्रमात्पुरा । स्वमुन्यं बोधि विमते वर्षे निराहयो नरः॥॥ प्राचारजैनधर्म बौद्धधर्मसमप्रभम् ।
(६) सरस्वतीगच्छकी भूमिकामें भी स्पष्टरूपसे वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका जन्म होना लिखा है; यथा'-'बहुरि श्री वीरस्व.मोडूं मुक्ति गये पीछे च्यारसैसत्तर ४७० वर्ष गये पीछे श्रीन्महाराज विक्रम राजाका जन्म भया ।'
(६) नेमिचन्द्राचार्य के 'महावीर चरिय' (देखो " भारतके प्राचीन राजवंश" भा० २१-४२) मे भी महावीरस्वामीसे ६०९ वर्ष ५ मास उपरान्त शक राजाका होना लिखा है ।