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प्रतिदान द्वारा उन सबको संतुष्ट किया । वे वोले, "यह शिशु महाभाग है । यह जिस दिन से रानी त्रिशला के गर्भ से आया है. उस दिन से ही हमारे घर में, नगर मे और राज्य में वन-धान्यादिक की वृद्धि हुई है । अतः इसका नाम 'वर्द्धमान' रक्खा जाय ।" उपस्थित बान्धवों ने इसका अनुमोदन किया । बालक वीर वर्द्धमान नाम से प्रसिद्ध हुए ।
एक दिन बालक वीर-वर्द्धमान रत्न जटित झूले में झूल रहे थे । आकाशमार्ग से ज्ञानपुञ्ज मुनि-युगल वहां आ उपस्थित हुये - वे चारण ऋद्धि के धारक थे उनके नाम संजय और विजय थे । उन्हें जिन सिद्धान्त मे कुछ शङ्काये थीं; परन्तु चालक - प्रभु के दिव्य दर्शन करते ही उनका संशयार्थ दूर हो गया। उन्होंने भगवान का नाम 'सन्मति' रक्खा। इस प्रकार भगवान चारु चन्द्र की तरह बढ़ने लगे ।
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