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जाकर रत्नवृष्टि की । कुण्डलपुर की जनता के भाग्य खुल गये ।
कुण्डग्रास के ज्ञातक क्षत्रियों के प्रमुख उस समय राजा सिद्धार्थ थे । राजा सर्वार्थ और रानी श्रीमती के वह धर्मात्मा पुत्र थे। उन्हें श्रेयांस और यशास भी कहते थे। वह काश्यपवंश के चसकते हुये रत्न थे। उनका विवाह वैशाली के प्रसिद्ध क्षत्रिय-वंश लिच्छवि के प्रधान राजा चेटक की पुत्री त्रिशला प्रियकारिणी से हुआ था। त्रिशला रानी विदेहदत्ता भी कहलाती
थी। वह विदुपी महिला-रत्न थीं। वह महाभाग-प्राचीदिश से भी सौभाग्यशालिनी थीं, क्योंकि उनकी कोख से जान-प्रकाश की मूर्ति-रूप वाल-सूर्य का जन्म हुआ था ।२ योग्य माँ ही योग्य पुत्र जनती है।
राजा सिद्धार्थ ज्ञात क्षत्रियों के प्रमुख नेता थे । इसलिये ही वह क्षत्रिय सिद्धार्थ कहे गये हैं। वह शस्त्र-शास्त्र में पारगामी
और विद्यारसिक थे । 'महावीर चरित्र' (पृष्ठ २४२) मे लिखा है कि "विद्याओं के फल से समस्त लोक को संयोजित करने वाले उस निर्मल राजा को पाकर राज विद्याये प्रकाशित होने
१. अधना कुछ लोग देवयोनि के अस्तित्व में शङ्का करते हैं, परन्तु पुरातन भारतीय पार्य मर्यादा में उनका अस्तित्व हमेशा माना गया है । ऋक संहिता ( १०१२०१२२), शतपथ (२०१५) और ऐतरेय ब्राह्मण ( २१२) में इन्द्र का उल्लेख है। बौद्ध शास्त्र भी देवयोनि बताते हैं। (लाहाकृत हेवेन एण्ड हेल देखो) सम्राट अशोक के रूपनाथ वाले लघ शिलालेख में देवतामों का उल्लेख है। (इंऐ० सन् १९१२ पृ. १७०) विदेशी धर्म भी जैसे पारसी, यहूदी, ईसाई और इस्लाम भी देवताओं को किसी न किसी रूप में मानते हैं। भाज कल्न सर थार्थर डायल, डॉ. ऋषि आदि प्रेतविद्या विशारद भी देवयोनि का अस्तित्व प्रमाणित करते हैं। अतएव उनके अस्तित्व .