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कामदेव सौन्दर्य और भोग शक्ति के आगार होते हुये भी शीलधर्म की मर्यादा उपस्थित करते हैं, उसी प्रकार एक तीर्थंकर धर्म-चक्र-प्रवर्तन करके धर्म-तीर्थ को जन्म देते हैं । धर्मतीर्थ की यह विशेषता है कि राजत्व और नीति एवं अर्थ और भोगउसी को आगे रखकर चलने है । जैसे अग्निवाहन ( रेलगाड़ी ) में एंजिन आगे होता है और उसी से वह चालन शक्ति उत्पन्न होती है, जो उसे निश्चित स्थान पर पहुँचा देती है, ठीक वैसे ही जीवनरूपी वाहन को उदेशित सुखधाम पर पहुँचाने के लिये धर्म-यंत्र आवश्यक है। तीर्थंकर धर्म-तत्व का निरूपण करते हैं, इसलिये वह महापुरुषों मे भी महान् हैं -- अनुपम त सर्वज्ञ - सर्वदर्शी तीर्थङ्कर महावीर का विशाल चरित्र भला क्यों न चित्त में शान्ति और ज्ञान को प्रकट करने का कारण बनेगा ?
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तब संसार अज्ञान अधकार मे डूबा हुआ था - वह वर्म ज्ञान रूपी प्रकाश पाने के लिये तड़फड़ा रहा था । ऐसे समय मे ज्ञात्रिक क्षत्रिय कुल मे धर्म चक्रवर्ती का जन्म होना किसे न प्रिय होता ? उस वाल - सूर्य का अभ्युदय पहले से ही सुखद लालिमा को प्रकट कर रहा था। ठीक ही है, 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात!' अभी भगवान् का जन्म नहीं हुआ था, किन्तु उनका पुण्य-प्रभाव पहले से ही प्रगट होने लगा । देवेन्द्र ने देखा कि पुष्पोत्तर विमान का देव भारतवर्ष के प्रसिद्ध नगर कुण्डलपुर मे जन्म लेगा । उनका ज्ञान सामान्य मतिज्ञान न था वह अवधि ज्ञान ( Clairvoyance ) के धारी थे । उन्होंने ज्ञाननेत्र से भविष्य देख लिया । देवेन्द्र ने कुबेर को यज्ञादी कि वह कुण्डलपुर की शोभा बढ़ा दे - उसे ऋद्धिसमृद्धि युक्त कर दे | कुबेर ने पंद्रह महीने पहले से कुण्डलपुर