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सिद्धान्त जनता के सामने आ रहे थे । जनता एक मार्गदर्शक की प्रतीक्षा कर रही थी । प्रतीक्षा विफल न गई । भगवान सहावीर का शुभागमन हुआ
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उस क्रान्ति काल मे यहा की राजनीति भी अछूती न रही। महाभारत युद्ध के उपरान्त भारतीय राजनीति छिन्न-भिन्न हो रही थी । यहा राष्ट्रीय एकीकरण और संगठन का अभाव था । सब अपना अपना राग और अपनी अपनी ढपली बजा रहे थे । किन्तु भ० पार्श्वनाथ के निकटवर्ती काल में, कहते हैं कि सम्राट् ब्रह्मदत्त ने भारत में एक सार्वभौम सत्ता स्थापित करने का उद्योग किया था - इसी कारण वह अन्तिम चक्रवर्ती सम्राट् कहा गया है, परन्तु अपने उद्देश्य मे वह सफल हुआ नहीं प्रतीत होता है । उसका अधार्मिक जीवन सभवतः उसमें बाधक रहा । साराशत. यहा उस समय एक नहीं अनेक राजा थे, और सच अपने २ राज्य में पूर्ण स्वाधीन थे । अलचत्ता यहाँ की जनता अपने नागरिक स्वत्वों के संरक्षण में सजग थी । कदाचित राजा अन्यायी और अत्याचारी होता तो उसे पदच्युत भी किया जाता था । यदि कभी एक नये राजा को चुनने की आवश्यकता होती तो प्रमुख नागरिकों की सम्मतिपूर्वक मंत्रिमंडल योग्य व्यक्ति को राजपद प्रदान करता था । पड़ौस के आततायी राजाओं के आक्रमणों से अपने को सुरक्षित रखने के लिए किन्हीं क्षत्रिय कुलों ने प्रजासत्तात्मक ढंग के राजसंघ स्थापित किये थे । यह 'गणराज्य' कहलाते थे । क्षत्रिय कुलों के चुने हुये प्रतिनिधि उनमें सम्मिलित होते थे और जनता