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( 35 ) वापी-स्नानागार-सभागृह-नाट्यशाला श्रादि आमोद-प्रमोद की सामग्री का बाहुल्य था । मकान और महल अच्छी कारीगरी के दो-दो तीन-तीन मंजिलो के बनते थे। चोरी बहुत कम होती थी ।
सामाजिक स्थिति उस समय समाज में शिक्षा का प्रचार पर्याप्त था । उपाध्यायमहाराज ब्रह्मचर्याश्रम में रख कर बालक-बालिकाओं को धार्मिक और लौकिक शिक्षा दिवा करते थे। जम्बूकुमार यद्यपि एक करोड़पति सेठ के पुत्र थे, परन्तु वह विद्याध्ययन के लिये उपाध्याय महाराज के निकट गुरुकुल में रहे थे । ग्रामीण सीधा-सादा जीवन बिताते थे, परन्तु नगरों में विलासिता बढ़ी हुई थी । युवक-युवतियाँ प्रेमालाप करतीं थीं । परिणाम स्वरूप गंधर्व विवाह भी होते थे । कामुकता की मात्रा समाज में सीमा को उलंघन कर गई थी । चन्दना का उदाहरण इसका प्रमाण है । महलों में भूलती हुई राजकुमारी को एक कामुक विद्याधर उड़ा ले जाता है । जब चन्दना के दृढ़चरित्र के सन्मुख वह हताश होता है, तो उसे एक अटवी में छोड़ देता है । वहाँ का सरदार उसे पाकर वासनामें घिरकता है, परन्तु चन्दना अपना शीलधर्म वहाँ भी 'अक्षुण्ण रखती है । स्त्रीत्व की हीनता और नैतिक मर्यादा की क्षोणता की पराकाष्ठा तो उस समय दीखती
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है जबकि चौराहे पर खड़ा करके चन्दना का मूल्य लगाया जाता है । वेश्यायें और कामुक पुरुष कितना वीभत्स हास परिहास करते हैं। महान् असह्य था वह दृश्य ! एक सभ्य सेठ उस