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________________ ( २३ ) वह भी दिगम्बर मुनि होगया, किन्तु वह तपस्वी-जीवन की कठिनाइयों को सहन न कर सका। जंगल में रह कर अपने शरीर को ज्यों-त्यों सरदी-गरमी से बचाता और वनफल खाकर कालक्षेप करता, अपनी शक्ति से अधिक भार उठा कर वह सन्मार्ग से च्युत हुआ। उसने अपना दूसरा ही मार्ग बनाया और एक ऐसे मत का प्रचार किया जो सांख्यमत से मिलता जलता था। सत्व की ओर वह बढ़ा, किन्तु बीच में वह रुक गया । कायल श का फल उसे अवश्य मिला । वह ब्रह्म स्वर्ग मे देव हुआ ! अब वह अहिंसा-संस्कार से दूर भटक गया था-भोगों में मग्न रहा; वहां के भोग भोगकर वह फिर मनुष्य हुआ। ___अयोध्या में कपिल ब्राह्मण का पुत्र जटिल हुआ। उसने मिथ्याशास्त्र पढ़े और सन्यासी होगया । तप वह तपता; परन्तु आत्मा के स्वभाव से बेसुध होकर अपने को जाने बिना कोई लोक को क्या जाने ? उसकी साधना अपूर्ण थी। वह मरकर फिर देवता हुआ और वहाँ से आकर फिर अयोध्या में भारद्वाज ब्राह्मण का पुत्र पुष्पमित्र हुआ। बाल्यकाल से ही उसे हठयोग साधने की रुचि थी। सन्यासी होकर वह एक बड़ा हठयोगी होगया। हठयोगी की साधनाने उसे शरीर पर अधिकार करना सिखा दिया-लोग उसके चमत्कार देखकर मुग्ध हो जाते थे। किंतु उससे आत्मबोध नहीं हुआ। आयु पूर्ण होने पर वह पुनः स्वर्गलोक का अधिकारी हुआ! स्वर्ग-सुख भोग कर वह जीवात्मा श्वेतिका नामक नगर में अग्निभति ब्राह्मण का पुत्र अग्निसह हुआ । सन्यास उसका
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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