________________
( ३२६ ) है और 'भागवत' से स्पष्ट है कि प्रथम तीर्थङ्कर ऋषभदेव ने जिन ऋषियों को दिगम्वरत्वका उपदेश दिया था, वे 'वातरशनाना' कहलाये थे। प्रो० अलनेट वेवर ने उक्त मंत्रवाक्य जैन मुनियों के लिये प्रयुक्त हुआ बतलाया है। 'जाबालोपनिषद सूत्र ६ में 'यथा जातरूपधरो निम्रन्थो निष्परिग्रहः” उल्लेख मिलता है। 'महाभारत' (आदि पर्व ३२६-२७) जैन मुनि को नग्न क्षपणक' कहा है। विष्णु'२ और 'पद्म'३ पुराणों मे भी जैन मुनि दिगम्बर कहे गये हैं। भतृहरि के 'वैराग्यशतक' में जैन मुनिको पाणिपात्री दिगम्बर लिखा है। इसी प्रकार वाराह मिहिर संहिता' मे जैन मुनियों को 'नग्नान्' और अहंतदेव को 'दिग्यास' लिखा है। 'पंचतन्त्र' में भी उनको नग्न बतलाया है। ज्योतिषग्रन्थ 'गोलाध्याय' में भी वे नंगे लिखे गये है। "मुद्राराक्षस' नाटक में नग्न क्षपणक रूपमें जैन मुनि का उल्लेख
बौद्धो के पिटक साहित्य मे निम्रन्थ श्रमण अचेलक अर्थात् नग्न ही कहे गये हैं। 'जातक' कथा में भ० महावीर को अचेलक 1. इण्डियन ऐन्टीकरी, भाग ३० पृष्ट २८० २. ततो दिगम्बरो मुण्डो-विष्णु पुराण, तृतीयांश म० १७११८ ३. दिगम्बरेण""जैनधमोपदेशः" दिगम्बर जैनधर्मदीपा दानम् ।
~पद्मपुराण प्रथम सृष्टिखंड १३ १. वेद पुराणादि अन्यों में जैन धर्म का अस्तित्व, पृ० १६ १. 'मग्नान् जिनानो विदुः ॥१३॥॥६॥ 'दिग्यासस्तरुणो रूपवारच कार्योऽहतां देवः ॥१५॥१८॥
-वराहमिहिर संहिता ६. 'करनीकृत! मुरिस्ता -तन्त्र व १ २. गोमायाय श-1. 8. Hindu Dramatic Works, p.10.