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( ३२५ ) वीर वाणी के अङ्गोपाङ्ग शास्त्रों का भी मनमाना संकलन किया था। वीर वाणी द्वादशाङ्ग रूप में सवोग उपलब्ध नहीं हो रही थी-उसका लोप श्रुतकेवली भद्रबाहु के साथ ही हो गया था। फिर तो एक देश द्वादशाङ्ग वाणी के ज्ञाता ऋषिवर ही शेष थे, जो अपनी अपनी बात आगे ला रहे थे । कलिग चक्रवर्ती प्रसिद्ध जैन सम्राट् ऐल खारवेल ने कुमारी पर्वत पर जैन श्रमणों का वृहद सम्मेलन करके द्वादशाङ्ग जिनवाणी के उद्धार का प्रयत्न किया अवश्य १ परन्तु उसका भी कोई सुफल नहीं हुआ। परिणामतः विरोधकी क्षीणधारा प्रबल होती गई और ईस्वी प्रथम शताब्दि में स्पष्ट होकर वह श्वेतपट अथवा श्वेताम्बर नाम से प्रसिद्ध हो गई ।२ प्राचीन जैन श्रमण जो नग्नता को श्रामण्य के , जर्नल भाव दी विहार एएड पोलीसा रिसर्च सोसाइटी, भा० १३
पृष्ठ २३६ इत्यादि। २. पाश्चात्य विद्वान भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। श्रीमती स्टी
वेन्सन ने "हार्ट प्राव जैनीज्म" (. ३५) पर लिखा है कि "धीरे धीरे इन साधुओं की चर्या परिवर्तित होती गई और नग्न रहने की प्राचीन प्रथा छोद दो गई । इन साधुओं ने श्वेत वम पहनना प्रारम्भ कर दिया।" (Gradually the manners and customs of the Church changed and the original practice of going abroad naked was abandoned. The ascetics began to wear the "white robe" अन्त में उन्होंने इस प्रसंग में मन्यत्र यही स्पष्ट किया कि ईस्पी प्रथम शती के लगभग श्वेताम्बरों की उत्पत्ति हुई-म कि दिगम्बरों की ("It is much more likely, however, that that the Swetambera party originated about that time and not the Digam. bara. Kalpasutra, Preface, poxv. )