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( २८८ ) के अनुसार ही वीर निर्वाण प्रचलित है। उस गणना के आधार निम्नलिखित गाथायें व श्लोक है:(१) सत्तरि चदु सद जुत्तो, तिण काला विकमो हवइ जम्मो। __ अठ बरस सोडस वासेहि भम्मिण देसे ॥१८॥
नंदिसघ पट्टावली (जै०सि०भा० ४।७५) (२) सत्तरि चदु सद जुत्तो, तिण काले विक्कमो हवइ जम्मो ।
अठवरस बाल लीला, सोडस वासेहि भम्मये देसो ॥ रस पण बीसा रज्जो कुणंति मिच्छोपदेश संजुत्तो। चालीस वरस जिणवर धम्मे पालेय सुर पयं लहियं ॥
विक्रम प्रबंध। (३) जं रयणिं कालगो अरिहा तित्थंकरो महावीरो ।
तं रयणिं अवंति वई अभिसित्तो पालयो रायो । सट्ठी पालग रन्नो पण परणसंयतु होई नंदाणं । अट्ठसयं मुरियाणं तीसंचित्र पुस्समित्तस्स ॥ बल मित्त भानुमित्ता सट्ठी बरिसाणि चतं नरवाहणो । तह गद्दी भल्लरन्नो तेरस वरिसा सगस्स चउ ।
तीर्थोद्धार प्रकीर्ण (४) पण छस्सयवरसं पणमासजुदं गमिय वीर णिज्बुइदो । सग राजो तो कक्की चदुणवतिय महिय सगमासं ॥
-त्रिलोकसार इन मान्यताओं के आधार से दिगम्बर और श्वेताम्बरदोनों ही आम्नाय के जैनी विक्रमाव्द से ४७० वर्ष पहले अर्थात