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( २६५ ) का नाम विश्वविख्यात है-चीन और जापान जैसे बड़े राज्य आज उनके भक्त है। किन्तु एक समय भ० महावीर के भक्त भी अगणित वड़े २ राजा-महाराजा थे। उन राष्ट्रों के दैनिक मनुष्य जीवन की तुलना यदि परस्पर की जावे तो जैन धर्स और बौद्ध घसे की मान्यताओं का अन्तर स्पष्ट हो जावे। आज चीनी और जापानी बौद्व होते हुये भी आमिपभोजी है, परन्तु संसार मे कोई भी जैनी आमिष भोजी नहीं मिलेग --जैनी पूर्ण शाकाहारी है। इसी से जैन और वौद्ध सतो का मतभेद स्पष्ट हो जाता है। यथार्थतः जैन और वौद्ध दो पृथक और स्वतंत्र मत थे। बौद्धधर्म की स्थापना शाक्यपुत्र गौतम ने की, परन्तु जैन धर्म तो उससे बहुत पहले से प्रचलित था । अतः दोनों मत एक नहीं हो सकते-न वह एक थे और न अब है।।
महावीर और गौतम यह दोनों पृथक नाम है। दोनों क्षत्रिय पुत्र अवश्य थे, परन्तु एक थे इक्ष्वाक्वंशी ज्ञातपुत्र और दूसरे कपिलवस्तु के शाक्य पुत्र! भ० महावीर का जन्म कुण्डग्राम मे हुआ, जवकि गौतम लुम्बनिवन मे जन्मे थे। गौतम की माता उनके जन्मते ही स्वर्गवासी हो गई थीं, परन्तु ज्ञातपुत्र महावीर की माता उनके वैराग्य तक जीवित रहीं थीं । गौतम के पिता शाक्यनृपति शुद्धोदन थे-महावीर के पिता नृप सिद्धार्थ थे। भ० महावीर ने विवाह नहीं किया-वह बाल ब्रह्मचारी रहे। इसके विपरीत गौतम शाक्यपुत्र का यशोदा नामक राजकुमारी के साथ विवाह हुआ, जिनसे उन्हे राहुल नाम का पुत्ररत्न प्राप्त हुआ था। भ० महावीर के वैराग्य का कारण जरा और मरण के भयानक दृश्य नहीं बल्कि ससार स्वरूप की यथार्थ दृष्टि
और लोक कल्याण की पुनीत भावना थी। गौतम जरा से जर्जरित वृद्ध को मृत्यु के मुख मे पड़ता देखकर भयभीत हो जाते है और सत्य की खोज मे चुपचाप रात को निकल जाते है।