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वस्त्राभूषण किसी पात्र को देने की इच्छा हुई । एक शूद्र उन्हें मिला उसे उन्होंने धर्म का स्वरूप समझाया - वह प्रतिबुद्ध हुआ । जीवंधर ने उसे गृहस्थ धर्म धारण कराया और उसे अपने वस्त्राभूषण दे डाले । जीव का यह सुधार सबसे बडा उपकार है । जीवधर मनुष्य ही क्या पशुओं का भी हित साधते थे । लोग गली मे पड़े हुए दुखी-दरिद्री कुत्तों को देखकर उन्हें दुरदुराते हैं और कष्ट देते हैं, परन्तु मानवता का पुजारी उनमें 'देव' के दर्शन करता है । राजकुमार जीवंवर अपने मानवधर्म को जानते थे । मार्ग में उन्हें एक मृत प्राय' कुत्ता मिला । जीवंधर ने उसकी सुश्रपा की और जब देखा कि वह मर रहा है तो उसे ' णमोकार महामत्र' सुनाया । कुत्ता समभावों से मरा और यक्ष जाति का देव हुआ । भगवान् महावीर ने जीवन विज्ञान के साथ ही मृत्यु का ज्ञान भी लेगों को कराया था। लोगों को मरने से भयभीत नहीं होना चाहिये । चोला बदलना वैसा ही है, जैसा कि जीर्ण-शीर्ण वस्त्र को उतार फेंकना । अतएव जब अन्त समय निकट आये तो विधिपूर्वक समाधि धारण करके समता भाव से प्राणविसर्जन करना उचित है । समाधि- स्थित मुमुवीर ममता-मोह को जीतता है और सबसे क्षमा चाहता है एवं सबको क्षमा करता है । जीवंधर कुमार इस सत्य को जानते थे । उनका जैनी जीवन था । इसीलिए उन्हों ने निरीह पशु का अन्त समय सुधार दिया - उसकी आत्मा का उत्थान हो गया । श्रेणिक ! जीवंधर कुमार महान् पराक्रमी और वीर पुरुष थे । अनेक राजाओं से उनका सम्बन्ध हुआ - वह शक्ति सम्पन्न हुए - काागार की दुष्टता उन्हें ज्ञात हुई । जीवधर ने उसे दण्डित किया और स्वयं राज्याधिकारी हुये । न्यायपूर्वक उन्होंने शासन किया । पर राजकाज करते हुए भी वह धर्मतत्व को भूले नहीं। एक मुनिराज के निकट उन्हों ने श्रावक के