________________
"सान प्रधान लहा महावीर ने, श्रेणिक आनंद में
( :) FAT ITE ' PTET, ayuri F ER FIR AFE REFFEETIRF RS firg TELFIE FY TRAF भार शैल परवीर-देशनाक Frel प्रधान
गए । ई गिफ
हिमा मत्त पतंग तुरंग, बड़े, रथ, 'धानत शोभित इन्द्रसवाईमा कभन्न क्षन्नी, वैश्य जु शूद्रा मुक्कामिनि भीर घंटी उमेडीई । कानापरी न सुनै कोम वानि, सुधूर के पर चली गई कार । EACEF EDIES IN 3 विवर झान्तमायाजी
तीर्थङ्कर संहाकीर विहार और धर्मप्रचार करते हुए एक बार वसार पर्वत पर आविराजमान हुई।। श्रेरिणकाराजपतिरू सेहिल वंदना को गये। मार्ग में लोगों ने देखा, एक मेडक के मुाँहा। विकासत कसल पुल है और वह कूदता सहावीर-समोशरण की
ओर जा रह्म है लोगों ने कहा, कैसा माहात्य है लिसकहिलेषी प्रभू महावीर का, यह तिरीह पशुः भीमाचो भक्तिप्रदशता करने जा रहा है। किन्तु दूंसरे क्षण उन्होंने देखा कि' वाई। मिढक श्रेणिक के हाथी के पैर से सम्सया, औशा अपनी इहलील समाप्त कर चुका है। जीवन की क्षणभंगुरता, पर इन्हे आश्रय हुआ। जीवन का क्या भरोसा. कांच की शीशी को फूटते देर लगती है, परन्तु, काया शीशी-को फूदते देशानही लगती ॥ मनुष्य जन्म की सार्थक्ता इसी में है कि मनुष्य अपना और पराया.हित साधले.। इस प्रकार को पुण्यमा विचारधारा-मा बहते हुए भक्तजन वीर समोशरण मे पहुँचे ।। समोशेरणा की वनराशि मे एक वृक्ष के नीचे शिला पर धर्मविप्नामका मुनि ध्यानसरत वैठे हुए थे । श्रेणिक ने उनमे देखा-अभिवंदना की। परंन्त उनका किञ्चित् विकृत मुख देखा पर उनको मोठा हुई कि वह प्रभू महावीर के निकट पहुंचे। उनको नमस्कार किया और