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(२१ ) कुणिक-अजातशत्रु की वीर वन्दना ! "( चम्पाणां णयरी होत्था) 'तएणं से कूणिए राया.. समणं भगवं महावीरं वंदति णमंसति ।...
-औपपादिक सूत्र ३२ सम्राट श्रेणिक विम्बसार के एक अन्य पुत्र राजकुमार कुणिक अजात शत्रु थे। अभयकुमार के मुनि हो जाने पर वह युवराज हुए थे। श्रेणिक ने अंगदेश को जीत लिया था-आरम्भ में इस विजित देश पर शासन करने का भार कुणिक अजातशत्रु को प्राप्त हुआ था । इसीलिये उन्हे शास्त्रों मे चम्पानगर का राजा लिखा है। उपरान्त वह मगध साम्राज्य के राजसिंहासन के अधिकारी हुए थे। जिस समय भ० महावीर विहार करते हुए चम्पा पहुँचे थे, उस समय चम्पा में कुणिक अजातशत्रु ही राजा थे। उन्होंने भक्तिपूर्वक भगवान् की वन्दना की थी। अपने प्रारंभिक जीवन में अजातशत्रु समुदार थे। देवदत्त के बहकाने से वह बौद्ध हो गये थे, परन्तु आखिर उन्होंने जैन धर्म को स्वीकारा और उसकी उन्नति की थी।1
भ० महावीर की वन्दना करके सम्राट् अजात शत्रु ने उनसे पछा था कि "प्रभू ! दुनियां के लोग लाभ के लिये ही कोई उद्योग करते है साधु भी किसी अच्छे लाभ के लिये घर छोड़ते 1. "Ajata-shatru Patronised the Jaing." EHI,P 36
"Jains have more claim to include the pare ricide king amongst their converts than the Budhists "--J. Charpenter, CHI., I, 161.