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| संसार की सृष्टि अकेला पुरुष नहीं कर पाता - - स्त्री भी नहीं । हाँ, किसी समय पुरुषों का सर्वथा अभाव होते हुए भी कोई गर्भवती स्त्री पुत्र जन्म देकर सृष्टि का क्रम चालू रख सकती है । उस पर सुशील दम्पत्ति ही धर्म साधन के मूल आधार हैं। शुद्ध आहार-विहार कुशल गृहिणी पर अवलम्बित है --उसी के निमित्त से गृहस्थ दान-पुण्य का धर्म कमाता है और साधु अपने शरीर को स्थिर रख कर धर्म का प्रकाश फैलाता है। संघ की सुव्यवस्था और उन्नति धर्मशील सम्पन्न विदुषी गृहस्थ और साधु रमणियों पर निर्भर है । चन्दना । जीवन की सार्थकता धर्म पालन में है । चन्दना ने मस्तक नवाया | पंचमुष्टि लोंच किया और श्वेत साड़ी पहन कर वह ज्ञान - ध्यान में लीन हो गई ।
वह राजा चेटक की पुत्री थीं। मगध की महारानी चेलनी उनकी बहन थीं । चेलनी ने सुना कि उनकी बहन चन्दना तीर्थकर महावीर के आर्यिका संघ की अग्रणी बनीं हैं, तो उसे बड़ा हर्ष हुआ। वह अपनी सपत्नीक ( सौत ) बहनों-- श्रेणिक की अन्य रानियों के साथ उनकी बन्दना करने गई । चन्दना ने उन्हें धर्म का स्वरूप समझाया। रानियाँ भव्य थीं। वह नियमित रीति से प्रति दिन उनके पास आकर धर्म शास्त्रों का अध्ययन करने लगीं और जैनधर्म की पण्डिता हो गई । बिना धर्मज्ञान के मनुष्य जीवन में वह कोमल सरसता नही आती जो हृदुतन्त्री की सलिल स्वर लहरी को कंकरित करती हैं। 'धर्मज्ञ माताये और बहनें जगत के लिये वरदान है' -- वीरसंघ की गृहत्यागी साध्वीरमणियों ने यह सत्य भ० महावीर से सुना था । इसीलिये वह इन्द्रियों को संयत रख कर महिलाओं में धर्म ज्ञान का प्रकाश फैलाने मे जुट पड़ीं थीं । चेलनी का धर्मज्ञान उनके दैनिक जीवन में मूर्तिमान हो चमका था । अपने पति राजा श्रेणिक को उन्होंने