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महिलारत्न चन्दना और चेलनी की वीर भक्ति " स्त्रीतः सर्वज्ञनाथः सुरनत चरणो जायतेऽवाधवोधस्तस्मात्तीर्थ श्रुताख्यं जनहित कथकं मोक्षमार्गाविवोधः । तस्मात्तस्माद्विनाशो भव दुरित ततेः सौख्ययस्माद्विबाधं । बुध्यैवं स्त्रीं पवित्रां शिवसुखकरिणीं सज्जनः करोति ॥” अमितगतिः ।
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स्त्री और पुरुष मिल कर गृहस्थ-जीवन बनाते हैं। संसार दोनों की युग्म-शक्ति का प्रादुर्भाव - लीलाक्षेत्र है । पुरुष अकेला न-कहीं का है - स्त्री अकेली का कोई ठिकाना नहीं । सृजन-जननपोषण और वर्द्धन की शक्तियां पुरुष और स्त्री के ऐक्य समिष्टि मे हैं । फिर भला स्त्री को कोई कैसे भुलावे ? कहते हैं, ब्रह्मा ने उसका रूप देखने के लिये हजार नेत्र बनाये थे | हजार दृष्टिकोण से उसका रूप देखा जा सकता है । जगत की मुख्य शक्ति स्त्री है । वह चाहे जग को नर्क बना दे और चाहे तो उसे स्वर्ग में बदल दे ! इसलिये स्त्री को सुसंस्कृत करने की आवश्यकता स्वाभाविक है । सुसंस्कृत स्त्री जगत का प्रकाश है - असंस्कृत वही जगत के लिये अभिशाप है ! सुसंस्कृत भाग्यवान् स्त्री से ही देवों द्वारा वन्दनीय सर्वज्ञ देव उत्पन्न होते हैं । स्वाति - सीप के तुल्य महिला - रत्न त्रिशला की पवित्र कोख से ही सर्वज्ञ महावीर जन्मे थे । मावीर इस सत्य को जानते थे । उनका आदर्श बता रहा था कि स्त्री से ही वह सच्चे देव जन्मते हैं, जो सच्चे शास्त्रों का उपदेश देते हैं। सच्चे शास्त्रों से मोक्षमार्ग का ज्ञान होता है, जिससे संसार क्षीण हो मोक्ष सुख मिलता है । भ० महावीर ने