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________________ ( १६४ ) सिकोड़ते हैं, परन्तु वह भूलते हैं। मनुष्य अपने नैसर्गिक रूप में रहे, यह क्षमता प्राप्त कर लेना इस बात का प्रमाण है कि उसने वासना और लज्जा को जीत लिया है। सोते जागते-चपल चंचल जगत् और निर्जेन एकान्त में वह इन्द्रियनयी एक-सा रहता है। प्रकृति के प्रकोप उसका कुछ नहीं बिगाड़ते । सदाचार की मूति वना हुआ वह अपना और पराया हित साधता है। वह आवश्यकताओं से मुक्त और आकांक्षाओं से निर्लिप्त होता है। कांच-कंचन-स्मशान-महल उसके लिये एक से होते हैं । भख और प्यास को वह जीत लेता है । सुख-दुख की विषमता में वह समता के दर्शन करता है इस कारण वह समदृष्टि है-और लोक उसकी विनय और वन्दना करता है । यह है महत्व एक दिगम्वर मुनि का | उस पर हम सहसा अविश्वास कैसे करें ? तलवार की तेज धार पर चलनासुगम है,परन्तु मुनिधर्म धारण करना अति साहस का काम है संसार मे ऐसे महापुरुष विरले ही होते हैं।' सम्राट् श्रेणिक की इन मार्मिक बातों का प्रभाव प्रजा पर खव ही पड़ता था। आज भी संसार के सभी मतों में साध की परमोच्च दशा दिगम्वर (नग्न) ही वताई है। उपनिषदों मे परम स तरियातीत साधओं को दिगम्बर-भेषी लिखा है। इस्लाम में भी दरवेश का उच्चतम स्वरूप यथाजात नग्न वताया है। और "यथाजातरूप-~घरो निमेन्यो निष्परिग्रह " शुक्लध्यानपरागोऽध्यात्मनिष्टो... .".-जावालोपनिषद प० २६०.२६, । धि के लिये हमारी 'दिगम्बरव और दिगम्बर मुनि' नामक पुस्तक देखना चाहिये। इस्लाम में यह नगे ऊँचे दजे के दरवेश 'श्रवदाज' (Abdal) भरलाते हैं। ऐसे बरहना दरवेशों में अबुज कासिम गिलानी विशेष प्रख्यात थे। (Mysticism & Magic in Turkey नामक पुस्तक देखो) मौ० जलालुद्दीन रूमी ने अपने 'मस्नवी' प्रन्य में नग्नता के पक्ष में जो लिखा है, उसका भाव निम्न पद्यों में गर्भित है: (नग्न) ही वामता में साधी हंस तरियाती
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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