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उल्लेख है कि भगवान् महावीर नालन्दा, राजगृह, परिणयभूमि, सिद्धार्थग्राम, कूर्मग्राम आदि स्थानों में भी पधारे थे । 'उपासक दशासूत्र' में लिखा है कि वणिजाम, चम्पा, वाराणसी, आलभी, काम्पिल्यपुर, पोलासपुर, राजगृह और श्रावस्ती भगवान् के पदार्पण से पवित्र हुये थे । वणिजाम मे श्रावक आनन्द और उनकी भार्या शिवनन्दा उनके अनन्य उपासक थे | चम्पा मे श्रावक कामदेव और श्राविका भद्रा, वाराणसी मे श्रावक चूलनि प्रिय एवं सूरदेव और श्राविका श्यामा तथा धन्या, आलभी में श्रावक चुल्लसतक अपनी भार्या बहुला सहित; कम्पिल्यपुर मे कुद कोलित और पुष्पा दम्पति; पोलासपुर में सर्दल पुत्र और अग्नि- मित्रा; राजगह मे श्रावक महासतक और विजय एवं श्रावस्ती मे नन्दिनिप्रिय एव सलतिप्रिय तथा उनकी पत्नियाँ अश्विनी और फाल्गुणी भगवान् के अनन्य उपासक और भक्त हुए थे । जैनत्रतों को पालकर और विशेष उत्सव मनाकर उन्होंने धर्म की प्रभावना की थी । यह सब विशेष धनाढ्य गृहपति थे | गृहपति आनन्द की सम्पत्ति के विषय मे लिखा है कि चार करोड़ स्वर्ण-मान उनका सुरक्षित था और चार करोड़ स्वर्णमान व्याज पर लगा हुआ था । इस धन के अतिरिक्त अचल सम्पत्ति भी उनकी चार करोड स्वर्ण मान की थी और उनका पशुधन भी अत्यधिक था । पशुधन चार समूहों - गो समूह आदि मे विभक्त था, जिसके प्रत्येक समूह मे दस हजार गौये आदि पशु थे । उनका आदर बड़े २ राजा महाराजा और सेठसाहूकार करते थे । गर्ज यह कि भगवान् के यह गृहस्थ-भक्त सम्पत्तिशाली लोकमान्य व्यक्ति थे । पर खूबी यह थी कि भ० की शिक्षा ने उन्हे धन और बल पाकर भी मदमत्त नहीं बनाया था- वह कषायों और वासनाओं के आधीन नहीं थे; बल्कि नियमित धार्मिक जीवन बिताते थे । उनके अपने 'प्रोषधभवन'