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उन्हे प्रयोजन ही न था। बात तो यह थी कि जिस क्षेत्र का सौभाग्य होता था जिसमे धर्मामत वर्षा के प्यासे चातकों की छटपटाहट वह पुण्याकर्षण उत्पन्न करती थी जो सहज सुलभ नहीं, उधर ही भगवान् का विहार स्वयमेव हो जाता था। प्रत्येक नगर और ग्राम के लोग उनके शुभागमन की प्रतीक्षा आतुर हुये करते थे। समस्त आर्यावर्त को उनके धमित पान करने
और दर्शन से पवित्र होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। किन्तु आपका सर्वाधिक विहार विहार प्रान्त मे हुआ-वह भाग पहले मगध, अङ्ग आदि देशों में विभक्त था, परन्तु भगवान महावीर के पवित्र विहार के उपलक्षमे वह 'विहार' कहलाया। भगवान की निर्वाणभूमि भी इसी प्रान्त मे है। उनके नाम-वाले जैसे वीरभमि, वर्द्धमान, सिंहभमि आदि नगरादि भी यहाँ मिलते है । निस्सन्देह जनसमुदाय भ० महावीर के प्रति अपनी भक्ति
और कृतज्ञताज्ञापन के भाव को मूर्तिमान बनाने के लिये लालायित थे। आखिर, अधर्म और अज्ञान के घोर अंधकार में ज्ञानसूर्य का प्रकाश भगवान ही ने तो फैलाया था ! ___ श्रीमद्भगवत् जिनसेनाचार्यजी ने अपने 'हरिवंशपुराण' (पाठ १८) में भगवान् के विहार के विषय में लिखा है कि "जिस प्रकार भव्यवत्सल भगवान् ऋषभदेव ने पहिले अनेक देशों मे विहार कर उन्हे धर्मात्मा बनायाथा, उसी प्रकारभ०महावीर ने भी मध्यके-काशी, कौशल, कौशल्य, कुसंध्य, अश्वष्ट, साल्व, त्रिगर्त पंचाल, भद्रकार, पाटचर, मौक, मत्स्य, कनीय, सूरसेन एव वृकार्थक नाम के देशों में, समुद्र तट के-कलिङ्ग, कुरुजागल, कैकेय, आत्रेय, कावोज, वाल्हीक, यवनश्रुति, सिंधु, गाधार, सूरभीरु, दशेरुक, वाडवान, भारद्वाज और क्वाथतोय देशों मे, एवं उत्तर दिशा के तार्ण, काणे, प्रच्छाल आदि देशों मे विहार कर उन्हे धर्म की ओर ऋजु किया था।" भगवान महावीर का