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( १०६ ) शान्ति की विद्य त धारा का बह जाना ! जैन शास्त्र बताते हैं कि जब भ. महावीर केवलज्ञानी हुये तो सारे लोक में अपूर्व प्रकाश फैला था और सारे ही जीव सुखी हुये थे। उनके तेजस शरीर की वर्गणाओं से वह शान्त-शीतल और मधुर शक्तिधारा वही थी जो विद्युतधारा से भी सक्ष्म और व्यापक थी! और थी 'आत्माल्हाद की परक | आखिर ज्ञात्रिक महावीर महान् उद्योग के पश्चात् ही तो तीर्थङ्कर पद के अधिकारी हुये थेउनके रोम रोम से दर्शन-ज्ञान-सुख-शान्ति शक्ति की अचिन्त्य पुण्य वर्षा होती थी। वे थे उस समय अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान अनन्त सुख, और अनन्त वीर्य के जीवित प्रभा-पुञ्ज ! वे थे उस समय के मनुष्यों में सर्वोत्कृष्ट, प्रभावशाली, और सच्चे मोक्षमार्ग के उपदेष्टा ११ लोक ने उनके नेतृत्व में आत्मस्वातंत्र्य पाने का सीधा और सच्चा रास्ता देखा था-' ऐहिक परिपूर्णता का यथार्थ दर्शन पाया था और सीखा था 'वसुधैवकुटम्बकम्' का सुवर्ण-सिद्धान्त ! बौद्धों के 'अङ्गत्तर निकाय नामक ग्रन्थ मे लिखा है कि निग्रन्थ ज्ञातपुत्र महावीर सर्वज्ञाता और सर्वदर्शी थे। उनकी सर्वज्ञता अनन्त थी । वह हमारे चलते, वैठते, सोते, जागते हर समय सर्वज्ञ थे।२ 'मझिमनिकाय' में उल्लेख है३ कि ज्ञातपुत्र महावीर सर्वज्ञ हैं- वह जानते हैं कि किस किस ने किस प्रकार का पाप किया है और किसने नहीं किया है। 'दीघनिकाय' में लिखा है कि भ० महावीर ज्ञातपत्र संघ के आचार्य, दर्शन शास्त्र के प्रणेता. गणाग्रणी बहु प्रख्यात, तत्ववेता रूप में प्रसिद्ध, जनता द्वारा १. जैसू० २।२८७-६. २. अंनि० ॥२२० ३. मनि० १२१४-२८