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________________ ( हह ) ताम्वरीय जैन शास्त्र मे आगे लिखा है कि इन्द्र ने उस ज्योतिषी की द्विविधा दूर की और कहा - "शास्त्रमे शङ्का क्यों करते हो ? तुम तो अभी इन भिक्षुराट् के वाह्य लक्षणों को ही जानते हो - उनके अन्तर्लक्षणो से अपरिचित हो । इन प्रभु का मांस और रुधिर दूध के समान उज्ज्वल और सफेद है । इनके मुख कमल का श्वास कमल की खुशबू के समान सुगन्धित है । इनका शरीर निरोगी और मल - स्वेदादि रहित अपर्व है । ये तीनों लोक के स्वामी, धर्मचक्री विश्व के आश्रय दाता राजा सिद्धार्थ के पुत्र महावीर है | इन्द्र - नरेन्द्र सभी इनके सेवक हैं । इनके सम्मुख चक्रवर्ती किस गिनती मे हैं ? शास्त्र मे कहे लक्षण ठीक है । तुम शंका न करो !' ज्योतिषी प्रसन्न हुआ इन्द्र ने उसे इच्छित फल दिया । निस्सन्देह यह भगवान् महावीर की योग साधना का प्रभाव था कि यद्यपि वह मौन रहते थे - किसी को उपदेश नहीं देते थे, फिर भी अपने व्यक्तित्व से लोक को प्रभावित करते थे-उसे अहिंसा और सत्य के दर्शन कराते थे । सत्यनिष्ठा और योगाचार्य का प्रभाव कार्यकारी होता ही है । भ० महावीर के छद्मस्थ जीवन मे हमें उसकी पूर्णता के दर्शन होते है । धन्य थे महावीर योगिराट् ।
SR No.010164
Book TitleBhagavana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Parishad Publishing House Delhi
PublisherJain Parishad Publishing House Delhi
Publication Year1951
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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