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( ८० ) कर कहा कि "वत्स ! यह हमारा सौभाग्य है कि तुम हमारे यहाँ अवतरे हो तुम तीर्थकर होकर इसी जन्मम त्रिलोक्यपज्य वनोगे! तीनों लोकके प्राणी तुम्हारे दर्शन करने के लिये लाला
दिखती है। उस समय गुजरात देश में बौदों को सख्या भी काफी थी। वल्लभीराजाओं का आश्रय पाकर श्वे. जैनाचार्य अपने धर्म का प्रसार कर रहे थे । बौद्धों को अपने धर्म में सुगमता से दीक्षित करने के लिए--उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए उन्होंने अपने प्रागमअन्थों का संकशन चौद्धप्रन्यों के आधार से किया प्रतीत होता है और उनमें भ० महावीर के चरित्र को म० गौतम बुद्ध के चरित्र से बिल्कुल मिलता जुलता बना दिया गया है। बोद यात्री ह्या नसांग ने अपने यात्रा विवरण (पृ० १४२ ) में स्पष्ट लिखा है कि श्वेतपटधारी जैनियों ने चोदनयों में बहुत सी बातें लेकर अपने शास्त्र रचे हैं। ह्य न्त्सांग का संकेत संमवतः श्वे० ग्रन्थों के इस सादृश्य को लक्ष्य करके ही है। अधुना पाश्चात्य विद्वान् भी इस बात को स्वीकार करते है कि संभवत श्वेताम्बरों ने श्री महावीर जी का जीवन वृतान्त म. गौतमवुद के जीवन चरित्र के प्राधार मे लिखा है। (बुल्हर, इंडियन सेक्ट प्राब दी जैन्स, प. ४५) "ललित विस्तार और "निदानकया" नामक बौदग्रयों में जैमा चरित्र गौतमबुद्ध का दिया है, उससे श्वेताम्बरों द्वारा वणित म० महावीर के चरित्र में कई बातों में सादृश्य है । (कहिइं० ११६) उदाहरण रूप में देखिये यह साहश्य जन्म से ही प्रारम्भ होता है। न० बुद्ध जानते थे कि वह स्वर्ग से चय कर अमुक रीति से जन्म घारण करेंगे। म. महावीर के विषय में श्वेताम्बरीय शास्त्र कहते है कि उन्हें अपने श्रागमन का ज्ञान तीन प्रकार से था। युवावस्था के वर्णन में भी दोनों में सदश वर्णन है । यौद कहते हैं कि गौतम ने यशोदा को व्याहा, श्वेताम्बर भी लिखते हैं कि महावीर ने यशोदा में विवाह किया था ।