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( ७८ ) हुये । कलिग देश के महाराज जितशत् अपने राजशिविर सहित कुण्डग्राम आये । उनकी यशोदा नामकी राजकुमारी अनुपम सुन्दरी थी। राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला राजकुसारी यशोदा के रूपलावण्य और गुणों को देख कर उन्हें अपनी पत्र वधू वनाने के लिये उत्कण्ठित हुये। राजकुमार वर्द्धमान के सम्मुख
का अभाव अनहोनी बात नहीं है। अाजकल भी ऐसे मनुष्य हैं जिन्हें मलमूत्र की वाधा जल्दी नहीं सताती | अलीगढ़ जिले में एक मनुष्य लगातार बारह वर्ष तक पाखाने नहीं गया था और खाता-पीता रहा था। भस्मकव्याधि में नीहार होता ही नहीं । (वृहद जैन शब्दार्णध १११७१-७३) इसी लिए भ० महावीर का शरीर अनठा था। सन्नाट खारवेज के शिलालेख में भी इसका उल्लेख निम्न प्रकार है..... चेतिराजवसबधनेन पसथ सुभलखनेन चतुरंतलुठित गुनोपहितेन कलिंगाधिपतिना सिरि खारवेलेन । " • • तदानि वधनान-पेसयो वेनाभि विजयो ततिये . . . .. ..." !"
भावार्य-"चेतिरान वंशवद्धन प्रशस्त शुमलक्षणों से सम्पन्न, चतुर्दिकन्याप्त-गुणागरिमा-युत कलिंगाधिपति श्री खारवेल थे । " . ...." जो अपने बाल्यकाल में रानकुमार बर्द्धमान के समान और अपनी विजयों में वेण के तुल्य थे।" सारांश यह कि भ० महावीर अपने अद्वियीय शरीरगठन और रूपराशि के लिए प्रसिद्ध थे।
१. 'हरिवंशपुराए' में कुमार महावीर की विवाह योजना का उल्लेख
निम्न प्रकार है, जिससे स्पष्ट है कि उन्होंने विवाह करना
स्वीकार नहीं किया था"भवान्न कि श्रेणिक वेत्ति भपति, नपेन्द्र सिद्धार्थ फनीयसीपति । दमं प्रसिद्ध जितशत्रमास्यया, प्रतापवन्तं जितशत्रुमएडलन् ।।६।।