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( ७७ ) बेटे को देखकर फूले न समाते थे। महावीर की युवावस्था ने उन्हे सचेत किया-मां की ममता जागी। उन्होंने चाहा महावीर का विवाह हो जावे । राजा सिद्धार्थ ने उनके प्रस्ताव को सराहा । मंत्रियों न योग्य कुमारी से विवाह सम्बन्ध स्थिर करने के लिये राजदूत दौड़ाये । वडे-बड़े राजा-महाराजा अपनी २ राजकुमारियों का पाणिग्रहण संस्कार भ० महावीर से करने के लिये लालायित
(७०) और प्रिय हितकर वचन | इन अतिशयों में शङ्का करना व्यर्थ है, क्योकि सामुद्रिक शास्त्रानुसार विशिष्ट शरीर होना सिद्ध है; जिसे श्राधनिक विज्ञान भी अमान्य नहीं ठहराता। प्रत्यक्ष अनेक लक्षण अधुना लोकमान्य पुरुषों में मिलते हैं। मल-सूत्रादि के अभाव और दुग्धवत् रक्त के होने में भी कोई अत्रभा नहीं है क्योंकि जिस तीर्थकर नाम कर्म प्रकृति के उदयानुसार शरीर-नाम-कर्म उनका निर्माण करता है, वह ही साधारण जीव-मनुष्य-पशु श्रादि के नाम कर्म से भिन्न होती है। शरीर निर्माण का कार्य नाम कर्म के ही श्राधीन है । तामसिक गुण की अधिकता से शारीरिक स्वास्थ्य नष्ट होता है क्योंकि इस गुण को प्रधानता से ही मनुष्य को निद्रा पाती है। श्राय. वेदाचार्य सुश्रुत तमोगुण के श्राधिक्य से निद्रा का होना बताते हैं। ( तमोऽभिभूते तस्मिंस्तु निद्रा प्रविशति देहिनाम् । ) निद्रा जीवन की श्रेष्ठता को नष्ट करती है । किन्तु तीर्थकर के तमोगुण का अत्यन्त प्रभाव होता है। इसीलिए उनको निद्रा नहीं पाती और उनका स्वास्थ्य कभी नष्ट नहीं होता। अाजकल भी कई सात्विक लोग ऐसे हैं जो निद्रा को जीत लेते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक एडीसन ८-८ दिन तक नहीं सोते । एक अन्य साहब महीने में कुछ घंटे ही सोते हैं। तीर्थकर का शरीर ही साधारण सनप्य के शरीर से भिन्न प्रकार का होता है-उनके मलमूत्रादि