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________________ ७० सामाजिक संदर्भ (३) प्रचीर्याणुव्रत : रखे हुए, गिरे हुए, अथवा भूले हुए दूसरे के धन को ग्रहण न करना ही अचौर्यरिणुव्रत हैं । चोरी का उपाय बताना, चोरी की वस्तु लेना, कानून का उल्लंघन करना, पदार्थों में मिलावट करना और तौलने नापने के बाटों को होनाधिक रखना ये पांच उक्त व्रत के अतिचार हैं. 1. ( ४ ) ब्रह्मचर्याणुव्रत : : परस्त्री का उपभोग न तो स्वयं करे और न दूसरे को ऐसा करने को प्रेरणा दे । कामुकता पूर्ण वचन बोलना, स्वस्त्री में भी तीव्र कामेच्छा, वेश्यागमन आदि भी इस व्रत के प्रतिचार हैं । परिग्रह परिमारगाव्रत : आवश्यकता से अधिक वस्तुनों का संग्रह न करना परिग्रह परिमारणारव्रत है अनावश्यकं वाहनों या वस्तुत्रों का संग्रह, दूसरे का वैभव देखकर ईर्ष्या करना, लोभ करना, आदि इसके प्रतिचार हैं । प्रतिचारों से दूर रहते हुए उपर्युक्त श्रणुव्रतों का पालन करके कोई भी गृहस्थ सदाचरण कर सकता है । इन व्रतों को धारण करने में जाति, कुल, ऊंच, नीच आदि की कोई बाधा नहीं है । किसी भी जाति, कुल का व्यक्ति अर्थात् मानव मात्र इन व्रतों को अपने जीवन में उतार सकता है । सुसंस्कृत समाज निर्माण : * ये व्रत सुसंस्कृत और सुव्यवस्थित समाज के निर्माण में बड़े सहायक होते हैं । व्यक्ति समाज की इकाई है, व्यक्ति के निर्माण से ही समाज का निर्माण होता है । अतः अणुव्रत जव इकाई रूप व्यक्ति को सच्चरित्र बनाता है, तब ऐसी इकाइयों से बना हुआ समाज भी निश्चय से सच्चरित्र, सुसंस्कृत और सुव्यवस्थित बनेगा । अणुव्रती समाज ·में अनाचार, कदाचार, भ्रष्टाचार, पापाचार की कुप्रवृत्तियां और विषमताएं नहीं पनप सकती, फिर अनैतिकता को स्थान ही कहां ? कुप्रवृत्तियों के अभाव में अनैतिकता तो स्वयंमेव ही समाप्त हो जायगी । हमारा संकल्प : ' · Pr इस प्रकार वर्ग हीन, सच्चरित्र और सुव्यवस्थित समाज के निर्माण हेतु व्यक्तिगत और राष्ट्रगत चारित्र का विकास करने में भगवान् महावीर की वाणी की उपादेयता स्वयं सिद्ध है | इस लोक मंगल विश्वजनीन भगवान् की वाणी का प्रसार एवं प्रचार हमारा परम कर्तव्य है और विशेष कर भगवान् महावीर के २५०० वें निर्वाणोत्सव पर उनकी दारणों का संदेश जन-जन तक पहुँचाकर आज की पनपती हुई अनैतिकता का मूलोच्छेदन करने के लिए हमें कृत संकल्प और दृढ़ प्रतिज्ञ हो जाना चाहिए । 2209 200 2445407 .....
SR No.010162
Book TitleBhagavana Mahavir Adhunik Sandarbh me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Bhanavat
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year
Total Pages375
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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