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आदर्श परिवार की संकल्पना और महावीर अल्पश्रम और अधिक धन उपार्जन की घटनायें भी देखने में आती हैं। मानव जीवन की यह विषमता अनेक व्यक्तियों में व्याप्त है। यह अनेक परिवारों की समस्या है । एक व्यक्ति कम सम्पत्ति उपाजित करता है, दूसरा अधिक । इससे यदि मानसिक अशान्ति उत्पन्न हो तो वह आदर्श परिवार के लिए घातक प्रवृत्ति है।
"इस समस्या का समाधान वर्द्धमान महावीर ने कर्म-सिद्धान्त के रूप में दिया । शाश्वत सत्य को अनावृत करते हुए उन्होंने कहा-मनुष्य स्वयं ही कर्मों का कर्ता एवं भोक्ता है । पूर्वाजित कर्म जव सत्ता में आते हैं, फल देना प्रारम्भ कर देते हैं तो मनुष्य का पुरुपार्थ निष्फल हो जाता है । इस कारण निष्ठापूर्वक श्रम करने पर भी सम्पत्ति की उपलब्धि न हो तो परिवार के अन्य सदस्यों का कर्तव्य है कि वे व्यक्ति की विवशता को देखते हुए उसके प्रति सद्भाव रखें । परिवार की शान्ति का यह मूल मन्त्र है । यह कर्म-फल सिद्धान्त व्यक्ति को दुर्दिन में धैर्य प्रदान करता है, उन्हें स्वयं अपने कर्मों के प्रति उत्तरदायी घोषित कर सन्तोप प्रदान करता है, भविष्य में दुष्कर्मो से बचाता है, वर्तमान में सत्कर्मों के लिए प्रेरित करता है, अनुचित अनैतिक कार्यों से रोकता है। परस्पर उपकार करते हुए जीना ही वास्तविक जीवन :
परिवार वह है जिसमें व्यक्ति साथ रह कर एक साथ सुख-दुःख भोगते हैं, परस्पर समान आचरण करते हैं, अतः व्यक्तियों की असमान उपलब्धियों के कारण परिवार के व्यक्तियों के परस्पर स्नेह में न्यूनता नहीं आनी चाहिए । अल्प सामर्थ्य और अल्प योग्यता वाले व्यक्ति को भी परिवार की सुख-सुविधा में समान भाग मिलना चाहिए । 'परस्परोपग्रहो जीवनाम् सूत्र परिवार के लिए भी मंगलमन्त्र है । परस्पर उपकार करते हुए जीवन व्यतीत करना ही जीवन की वास्तविक कला है, मनुष्य और मनुष्यता का लक्षण है। परिवार का निर्माण किसी अनुवन्ध पर आधारित नहीं है, किन्तु जन्म और पूर्वाजितं' संस्कारों का प्रतिफल है।। नारी की उचित प्रतिष्ठा :
विश्व के अन्य महापुरुषों ने नारी को हीन और उपेक्षा भरी दृष्टि से देखा, किन्तु महावीर के सिद्धान्तों में नारी को समान महत्ता दी गई है । पुरुषों के समान स्त्री को आत्म-साधना के लिए भी स्वतन्त्र मार्ग प्रदर्शित किया । भगवान् महावीर ने अपने विशाल संघ में नारी जाति के दीक्षित होने की व्यवस्था प्रदान की। महासती चन्दनवाला के उद्धार की घटना इसकी साक्षी है । गृहस्थ नारी को श्राविका की संज्ञा दी गई। आदर्श परिवार की कल्पना नारी जीवन को समुन्नत किए विना मिथ्या कल्पना के अतिरिक्त कुछ . नहीं है । गृहस्थ जीवन एक लम्बी यात्रा है, जो सचरित्र नारी को सहयात्री के रूप में पाकर ही सम्भव है। प्रादर्श विश्व का निर्माण :
आदर्श परिवार से आदर्श समाज और आदर्श समाज से प्रादर्श राष्ट्र का जन्म होता है । राष्ट्रों का समूह ही विश्व है । महावीर व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व के मंगलभाग्य के प्रणेता थे । उनके विचारों के अनुरूप हमें आदर्श गृहस्थ, आदर्श परिवार और आदर्श विश्व का निर्माण करना है।