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सामाजिक संदर्भ
(१६) इस प्रश्न में ईसामसीह के चमत्कार के विषय में लिखा है ।
(१७) ग्रागे चलकर कौन-सा जन्म होगा ? क्या इस बात की इस भव में जानकारी हो सकती है ? ग्रथवा पूर्व में कौन-सा जन्म था, यह जाना जा सकता है ?
(१८) दूसरे भव की जानकारी कैसे पड़ सकती है ?
( 22 ) जिन मोक्ष प्राप्त पुरुषों का ग्राप उल्लेख करते हो, वह किस आधार से करते हो ? (२०) बुद्ध देव ने भी मोक्ष नहीं पाया, यह ग्राप किस ग्राधार ने कहते हो ?
(२१) दुनिया की अन्तिम स्थिति क्या होगी ?
(२२) इस नीति में से सुनीति उद्भूत होगी, क्या यह ठीक है ?
(२३) क्या दुनिया में प्रलय होता है ?
(२४) अनपढ़ को भक्ति करने से मोक्ष मिलता है । क्या यह सच है ? (२५) कृष्णावतार व रामावतार का होना क्या यह सच्ची बात है ? (२६) ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर कौन थे ?
(२७) यदि मुझे सर्प काटने यावे तो उस समय मुझे उसे काटने देना चाहिए या उसे मार डालना चाहिए ? यहां ऐसा मान लेते हैं कि उसे किसी दूसरी तरह हटाने की मुझ में शक्ति नहीं है ।
बापू के इन प्रश्नों में अनेक प्रश्न ग्रात्मा, कर्ग और जगत् के सन्दर्भ में किए गए हैं । रायचन्द जी ने उन सभी का यथोचित उत्तर दिया जिनसे बापू को सन्तोष भी हुआ । १६ मार्च, १८९५ के एक अन्य पत्र के उत्तर में रायचन्द भाई ने जैन धर्म के अनुसार ग्रात्मा के स्वरूप को उपस्थित किया और अन्त में लिखा " तुम्हारे संसार-क्लेश से निवृत्त होने की सम्भावना देख कर मुझे स्वाभाविक सन्तोष होता है । उस सन्तोप में मेरा कुछ स्वार्थ नहीं है । मात्र तुम समाधि के मार्ग पर ग्राना चाहते हो, इस कारण संसार क्लेश से निवृत्त होने का तुमको प्रसंग प्राप्त होगा ।"
रायचन्द भाई ने ग्रार्य श्राचार-विचारों को सुरक्षित रखने की दृष्टि से बापू को अनेक पत्र लिखे थे । प्रार्य आचार अर्थात् मुख्य रूप से दया, सत्य, क्षमा आदि गुणों का आचरण करना और ग्रार्य विचार अर्थात् मुख्य रूप से आत्मा का अस्तित्व, नित्यत्व, वर्तमान काल में उस स्वरूप का अज्ञान तथा उस अज्ञान के कारणों को समझकर_ ग्रव्यावाघ सुख की प्राप्ति का प्रयत्न करना । कवि रायचन्द ने यह भी सुझाव दिया था कि दया की भावना विशेष रखनी हो तो जहाँ हिंसा के स्थानक हैं तथा वैसे पदार्थ जहां खरीदे-बेचे जाते हैं, वहां रहने अथवा जाने जाने के प्रसंग नहीं आने देना चाहिए । अन्यथा अपेक्षित दया भावना लुप्त होने लगती है । अभक्ष्य पदार्थो के सेवन से भी दूर रहना चाहिए |
मांसादि मक्षरण से प्ररुचि :
चापू
को मांस भक्षण से बड़ी प्ररुचि थी । विदेश जाने के पूर्व जैन धर्मावलम्वी