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महावीर : बापू
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के सूल प्रेरणा-स्रोत
० भागचन्द जैन
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भगवान महावीर और बापू अपने-अपने युग के क्रान्तिकारी महापुरुष थे । उन्होंने समयानुसार जनसमाज में ग्रार्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, श्राव्यात्मिक और सांस्कृतिक क्रांति का बीड़ा उठाया जिसका मूल आधार मानवता का अधिकाधिक संरक्षण करना था । लगभग २५०० वर्ष पूर्व भगवान महावीर का आविर्भाव हुआ था। समूचा भारतवर्ष उनके व्यक्तित्व और विचारों से प्रभावित था । आज भी उनके अनुयायी – जैन प्रत्येक प्रान्त में फैले हुए हैं और देश की अभिवृद्धि करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं । विशेषतः गुजरात की पावन वसुन्धरा प्रारम्भ से ही जैन शिक्षा और संस्कृति में अग्रणी रही है । वापू की भी जन्मभूमि होने का उसे सौभाग्य मिला है । फलतः जैन सिद्धान्तों से बापू का प्रभावित होना स्वाभाविक नहीं है ।
पारिवारिक पृष्ठभूमि : धर्म सहिष्णुता
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यद्यपि वापू के पिता वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायी थे परन्तु परिवार पर जैन धर्म के आचार-विचार का भी प्रभाव कम नहीं था महावीर की धर्मसहिष्णुता का पाठ बाप्पू को अपने पारिवारिक वातावरण से मिला । जैन धर्म के प्राचार्यों और विद्वानों के लिए भी उस परिवार से सदैव श्रादर-सम्मान मिलता रहा। वे जव भी प्राते उनसे धार्मिक तत्वचर्चा होती रहती । जैन भिक्षुत्रों के आने पर उन्हें भिक्षा देकर निश्चित रूप से सम्मानित किया जाता था । भिक्षु वेचर स्वामी तो वापू के परिवार के मानो सलाहकार ही थे । उनकी सलाह सहमति के विना प्राय: कोई भी महत्वपूर्ण कार्य हाथ में नहीं लिया जाता था । '
रायचन्द भाई : एक आध्यात्मिक गुरु
वापू को वाल्यावस्था से ही जैन संस्कृति का परिवेश मिला है । इसलिए उनके प्रत्येक सिद्धान्त में जैन-याचार-विचार का प्रभाव प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है । उन पर जैन संस्कृति के प्रभाव का उत्तरदायित्व रायचन्द भाई को विशेष रूप से दिया जा सकता है । बापू ने स्वयं एकाधिक वार कहा है तीन महापुरुषों ने छोड़ा है - टालस्टाय, रस्किन और
कि "मेरे जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव रायचन्द भाई । टालस्टाय ने अपनी
१ - ग्रात्मरक्षा : अनुवादक, पोद्दार, पृ० २६-५७ ।